Dr. Pradeep Kumwat

Dr. Pradeep Kumwat

Monday 29 July 2013

हे केदारनाथ कृपा कर ..........

कल जहाँ षांति के षिखर पर आस्था की बर्फ जमी थी
भोले के केदार में भक्ति रमी थी,
आज उसी षिखर पर सन्नाटा देखिये।
लाषों के मन्दिर में सिसकता प्रकृति का यह चेहरा भी देखिये
अलखनन्दा की कलकल अब उफान मंे बदली है
सरसराती हवा तूफान में बदली है,
घर-बार छोड़कर आये थे तेरे दर पर भोलेनाथ
बिन मांगे मोक्ष की क्या  ऊँचाई दी है
मंजर तो यह देखा ना था, जाना न था कभी 
हे नाथ कैसी तुने क्या अंगड़ाई ली है 
बिलकते मासूम बिछड़े अपने न जाने क्यों तृतीय नेत्र की ललाई दी है।
हमारे अपनों का बिगड़ता संसार 
अब न देखिये नाथ
केदार की छाती चढ़ी गिरीवर की गर्त देखिये
तेरी महिमा कौन कहाँ जान पाया 
क्या मालूम किसके कर्माे का फल कितने मानवांे पर आया
क्या मालूम प्रकृति से छेड़छाड़ का बदला तुने इस जन्म में 
इस तरह इंसानों को मोक्षधाम पर पहुँचाकर चुकाया
मौत जो तेरे चरण में हुई इससे बड़ी सौगात तो या होगी
पर तुने तेरे ही रचे संसार को आगोष में ले लिया
पर वहाँ दुनिया की पहचान क्या होगी
पर अब उन परिवार के आँसूआंे को भी थाम ले
बस अब और न रूला जीने की सांस दे
हे केदारनाथ तेरे चरणों में आए तेरे ही धाम पे दर्षन को बेताब है
कौन सो पाया तेरे चरणों पे चिर निद्रा वाले को सुख का धाम दे
तेरे नाम की महिमा सदा यूंही कायम रहती है और यूंही कायम रहेगी
धारीदेवी का जो सिंहासन छेड़ा जिसने
प्रलय का प्रकोप पाया भी उसने
पर अब मासूमों के कश्टों से कौन उभारेगा
जो अनाथ हुये बच्चें उन्हें कौन पालेगा?
पर तुझ पर विष्वास है हे भोलेनाथ तेरी कृपा से सब कल्याण होगा
जो मरगट बन गयी है देवभूमि 
वो फिर उत्कर्श के षिखर पर देवत्व होकर प्रबल प्रताप कैलाष होगा
तेरे चरणों में सुबह रचा बसा
एक बार इंसानी संसार होगी।

डा. प्रदीप कुमावत
लेखक, पर्यावरणविद्, षिक्षाविद्
निदेषक - आलोक संस्थान
उदयपुर
राजस्थान

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